भारत के पर्वत

0 Comments

a close up of a camel near the ocean

परिचय

भारत विविध प्राकृतिक संपदाओं का देश है, जिसमें पर्वत श्रृंखलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के पर्वत न केवल भौगोलिक संरचना में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। देश के उत्तरी भाग में स्थित हिमालय पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे ऊँची और विशालतम पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत श्रृंखला न केवल भारत, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की जलवायु और पर्यावरण को प्रभावित करती है।

हिमालय के अलावा, भारत में सतपुड़ा और विंध्याचल की मुख्य पर्वत श्रृंखलाएँ भी हैं, जो देश के मध्य भाग में स्थित हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएँ ना केवल भूवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त समृद्ध हैं। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला प्राचीन भारतीय सभ्यता के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में जानी जाती है और आज भी इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समय-समय पर मनाया जाता है।

दक्षिण भारत में स्थित पश्चिमी और पूर्वी घाट पर्वत श्रृंखलाएँ भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये घाट प्रमुख नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में इसी क्षेत्र की कृषि और जल स्रोतों के लिए आवश्यक हैं। इसके अलावा, ये पर्वत श्रृंखलाएँ जैव विविधता के हॉटस्पॉट के रूप में भी प्रसिद्ध हैं, जहाँ विभिन्न प्रकार के वनस्पति और जीव पाये जाते हैं।

भारत के ये पर्वत न केवल प्रकृति प्रेमियों और वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं, बल्कि ऐतिहासिक और गूढ़ धार्मिक महत्व भी रखते हैं। समय के साथ, ये पर्वत श्रृंखलाएँ भारतीय सार्वजनिक और निजी सम्बंधों का एक अनिवार्य अंग बन गई हैं। इस प्रकार, भारत के पर्वत प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर की दृष्टि से अत्यधिक मूल्यवान हैं।

“`html

हिमालय पर्वत श्रृंखला

हिमालय पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है और इसकी उत्पत्ति लगभग 50 मिलियन साल पहले हुई थी, जब भारतीय और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेट्स टकराईं। यह टेक्टोनिक गतिविधि हिमालय की भौगोलिक संरचना का मुख्य कारण है, जो कई ऊँची-ऊँची चोटियाँ, गहरी घाटियाँ और ग्लेशियरों से भरी पड़ी है। इस पर्वत श्रृंखला की सबसे प्रसिद्ध चोटी माउंट एवरेस्ट है, जो 8,848 मीटर की ऊंचाई के साथ विश्व की सबसे ऊँची चोटी है।

हिमालय में कई अन्य प्रमुख चोटियाँ भी शामिल हैं, जैसे कंचनजंगा, मकालू, और धौलागिरी। यह चोटियाँ पर्वतारोहियों और खोजकर्ताओं के लिए प्रमुख आकर्षण हैं। हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता और इसकी भौगोलिक विविधता इसे पर्यावरणविदों के लिए भी महत्वपूर्ण बनाती है। यहां की वनस्पतियों में अल्पाइन, टेम्परेट और सूक्ष्म उष्णकटिबंधीय वन शामिल हैं। हिमालय के जंगलों में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं में हिम तेंदुआ, लाल पांडा, और कस्तूरी मृग मुख्य हैं।

हिमालय पर्वत श्रृंखला का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिर, मठ और धार्मिक स्थल स्थित हैं, जिन्हें हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी मजबूत श्रद्धा से मानते हैं। गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ जैसे धार्मिक स्थल हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं। यहां की धार्मिक मान्यताओं में हिमालय को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है, जो इसे आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाता है।

“`

अरावली पर्वत श्रृंखला

अरावली पर्वत श्रृंखला भारत के सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसकी भौगोलिक स्थिति उत्तर-पश्चिम भारत में है। यह पर्वत श्रृंखला राजस्थान से हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है, तथा उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम तक लगभग 800 किलोमीटर की लंबाई में फैली हुई है। यह श्रृंखला प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक महत्व और जैव विविधता के लिए जानी जाती है।

अरावली पर्वत श्रृंखला का गठन प्रोटेरोजोइक इओन में लगभग 1.5 अरब वर्ष पहले हुआ था। यह भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और कई खनिज संसाधनों का खजाना माने जाते हैं। इस पर्वत श्रृंखला का उच्चतम शिखर गुरु शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है। गुरु शिखर लगभग 1,722 मीटर (5,650 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और यह राजस्थान का सबसे ऊंचा स्थान भी है।

अरावली पर्वत श्रृंखला का जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्व भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहां कई दुर्लभ पौधे और जानवर पाए जाते हैं, जो इस क्षेत्र की सजीव संपदा को बढ़ाते हैं। यह क्षेत्र कई नदियों और जल स्रोतों का जन्म स्थान भी है, जो राजस्थान और हरियाणा के लिए जल स्रोत का महत्वपूर्ण भाग हैं।

पर्यटन के दृष्टिकोण से, अरावली पर्वत श्रृंखला कई प्रमुख पर्यटन स्थलों का मका है। माउंट आबू, कुम्भलगढ़, और सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान जैसे स्थान यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। माउंट आबू, जो एक प्रमुख हिल स्टेशन है, यहां का मुख्य आकर्षण है और श्रेय प्राप्त करता है अपने प्राकृतिक सौंदर्य और दिलवाड़ा मंदिरों के लिए।

इतिहास के पन्नों में, अरावली पर्वत श्रृंखला को एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है। यही वह स्थान है जहाँ प्राचीन भारत के महान योद्धा और सम्राटों ने अपने किले और महल बनाए थे। कुम्भलगढ़ किला और रणथंभौर किला इस इतिहास के गवाह हैं और भारतीय इतिहास एवं सभ्यता में विशिष्ट स्थान रखते हैं।

सातपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रृंखला

भारत के मध्य भाग में स्थित सातपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाएँ भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सातपुड़ा श्रृंखला महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ राज्यों में फैली हुई है, जबकि विंध्याचल श्रृंखला उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और राजस्थान तक विस्तृत है। ये पर्वत न सिर्फ जलवायु और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालते हैं, बल्कि इनकी जैव विविधता भी अत्यंत समृद्ध है।

सातपुड़ा पर्वत श्रृंखला की उचाई औसतन 600 से 900 मीटर के बीच रहती है, जिसमें धूपगढ़ सबसे ऊंचा शिखर है, जिसकी उचाई 1,350 मीटर है। दूसरी ओर, विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की उंचाई औसतन 300 से 600 मीटर तक होती है। इसकी प्रमुख चोटी कलिंजर है जिसके एक ऐतिहासिक किला भी स्थित है।

ये पर्वत श्रृंखलाएँ कई प्रमुख नदियों का स्रोत हैं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ सातपुड़ा से निकलती हैं, जबकि चंबल और केन नदियाँ विंध्याचल से उत्पन्न होती हैं। इन नदियों के कारण इस क्षेत्र की जलवायु काफी हद तक हरीतिमा वाली रहती है, जो जैव विविधता को बनाये रखने में सहायक है।

जैव विविधता की दृष्टि से ये पर्वत श्रृंखलाएँ अनेक प्रकार के वन्यजीवों, पक्षियों और वृक्षों का आवास सिद्ध होती हैं। सातपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान इस संदर्भ में विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो बाघ, तेंदुआ, और कई दुर्लभ प्रजातियों का सुरक्षित आवास है। विंध्याचल क्षेत्र में भी अनेक वन और संरक्षित क्षेत्र हैं, जो जैव विविधता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव की दृष्टि से, ये पर्वत श्रृंखलाएँ स्थानीय जलवैज्ञानिक परिस्थितियों को स्थिर रखने, मृदा कटाव को नियंत्रित करने और जल संसाधनों की नियमितता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इनके संरक्षित क्षेत्र वर्षा जल को संचित करके नदियों और झीलों को भरते हैं, जो खेती और पेयजल आपूर्ति के लिए महत्व रखता हैं।

पश्चिमी और पूर्वी घाट

भारत के पश्चिमी और पूर्वी घाटों की पर्वत श्रृंखलाएं देश की भौगोलिक और पर्यावरणीय विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पश्चिमी घाट, जिसे सह्याद्रि भी कहा जाता है, गुजरात से लेकर केरल तक फैला हुआ है और यह भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। वहीं, पूर्वी घाट ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के क्षेत्रों से होकर गुजरता है, पूर्वी किनारे पर लगा हुआ है। दोनों घाट समृद्ध जैवविविधता और अद्वितीय मौसमी परिस्थितियों के लिए जाने जाते हैं।

पश्चिमी घाट में मॉनसून का गहरा प्रभाव होता है, जहां भारी बारिश होती है और नदी प्रणाली को पोषित करती है। इसके विपरीत, पूर्वी घाट में तुलनात्मक रूप से कम बारिश होती है, लेकिन इन क्षेत्रों में भी विविध जलवायु और मौसमी बदलाव देखे जा सकते हैं। पश्चिमी घाट का वनस्पति जगत घने वर्षावनों से युक्त होता है, जिसमें कई अद्वितीय और लुप्तप्राय प्रजातियाँ निवास करती हैं। पूर्वी घाट में अधिकतर सूखे और पतझड़ वाले जंगल पाए जाते हैं, जहां की वनस्पतियाँ शुष्क और अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में पनपती हैं।

जीव-जंतुओं की दृष्टि से, पश्चिमी घाट में कई विचित्र और संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जैसे कि नीलगिरि तहर और पश्चिमी घाट की नेत कछुआ। पूर्वी घाट भी कई अद्वितीय प्रजातियों जैसे कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और वल्चर की विभिन्न प्रजातियों का घर है। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों और अन्य वन्यजीवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

हालांकि, इन घाटों को प्रदूषण और संरक्षण के गंभीर मुद्दों का सामना करना पड़ता है। वनों की कटाई, प्रदूषण और अति दोहन से दोनों घाटों की जैवविविधता को खतरा है। संरक्षण के लिए जागरूकता और सतत प्रयास आवश्यक हैं, जिसमें सरकार, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठनों का सक्रिय योगदान हो। संरक्षण नीति का निर्माण और उचित कार्यान्वयन ही इन अनमोल प्राकृतिक धरोहरों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

नीलगिरि पर्वत

नीलगिरि पर्वत श्रृंखला भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है और इसकी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। नीलगिरि की पहाड़ियाँ तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की सीमाओं पर विस्तारित हैं। यहाँ की हरी-भरी घाटियाँ, घास के मैदान और पर्वतीय वृक्षारोपण क्षेत्र इस भाग को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करते हैं। इन पहाड़ियों का सबसे ऊँचा शिखर ‘डोडाबेट्टा’ है, जिसकी ऊँचाई लगभग 2637 मीटर है।

नीलगिरि पर्वत श्रृंखला की जैव विविधता अद्वितीय है और इसे ‘नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व’ के तहत संरक्षित किया गया है। यहाँ कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के वनस्पति और वन्यजीवन का निवास है। हाथी, बाघ, और भारतीय जाइंट स्क्विरल जैसे जीव यहाँ पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, नीलगिरि फ्लावर मीडोज और शोला फॉरेस्ट जैव विविधता के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रमुख पर्यटन स्थलों में ऊटी, कूनूर, और कोटागिरी शामिल हैं। ऊटी, जिसे ‘क्वीन ऑफ हिल स्टेशन्स’ भी कहा जाता है, पर्यटकों का एक प्रमुख आकर्षण है। यहाँ के बोटैनिकल गार्डन, ऊटी झील और ऊटी माउंटेन रेलवे पर्यटकों को खूब लुभाते हैं। कूनूर चाय बागानों और नीलगिरि पर्वत रेलवे के लिए मशहूर है।

नीलगिरि की पहाड़ियों में चाय के बागान भी विशेषता हैं। यहाँ की चाय की खेती और उत्पादन एक महत्वपूर्ण उद्योग है और पर्यटकों को चाय के कारखाने देखने और ताज़ी चाय का स्वाद लेने का विशेष अवसर मिलता है।

ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए नीलगिरि पर्वत श्रृंखला एक आदर्श स्थान है। डोडाबेट्टा और कोटागिरी में अनेक ट्रेकिंग मार्ग हैं जो पहाड़ों की खूबसूरती को नज़दीक से देखने का अनुभव प्रदान करते हैं। नीलगिरि की पहाड़ियों की यह विविधता यहाँ आने वाले पर्यटकों को एक समृद्ध और यादगार अनुभव देती है।

सिक्किम और उत्तरपूर्वी पहाड़ियाँ

भारत का उत्तरपूर्वी क्षेत्र अपने अद्वितीय भूगोल, समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है। विशेषकर सिक्किम राज्य, जो हिमालयी पर्वतों की गोद में बसा हुआ है, अपने बर्फ से ढके पहाड़ों और उद्यानों के लिए मशहूर है। इतनी विविधता और सौंदर्य के बीच यह क्षेत्र पर्वतीय पर्यटन के लिए एक प्रमुख मान्यता प्राप्त स्थान बन चुका है।

सिक्किम की भौगोलिक स्थिति इसे और भी अद्वितीय बनाती है। यह राज्य पूरे उत्तरपूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों का प्रमुख आकर्षण है। कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला, जिसे दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी के रूप में जाना जाता है, यहीं स्थित है। कंचनजंगा का पर्वतारोहण और इसके बेस कैंप तक की ट्रेकिंग यहाँ आने वाले पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसके अलावा, सिक्किम में त्सोमगो और गुरूडोंगमार जैसी खूबसूरत झीलें भी हैं, जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और भी बढ़ाती हैं।

सिक्किम की संस्कृति भी उतनी ही समृद्ध और रंगीन है। यहाँ के लोग तिब्बती-बौद्ध संस्कृति के प्रभाव में हैं, और इस राज्य में अनेक बौद्ध मठ स्थित हैं। इनमें से प्रमुख हैं रुमटेक और पेमायंगत्से मठ, जो सिर्फ धार्मिक महत्व के ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से भी अनमोल हैं। यह मठ हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को हर साल अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

उत्तरपूर्वी भारत की अन्य प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में मेघालय की खासी और जयंतिया पहाड़ियाँ भी शामिल हैं। इन पहाड़ियों में स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और शिलॉन्ग की गुफाएँ भी अद्वितीय पर्यटन स्थल हैं। यहाँ का वन्यजीवन, खासकर एक सींग वाले गैंडे, और प्राकृतिक नजारे पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करते हैं।

सिक्किम और उत्तरपूर्वी पहाड़ियों की अनोखी भौगोलिक स्थिति, विविध पर्यटक स्थल और समृद्ध संस्कृति इन पर्वत श्रृंखलाओं को भारत के पर्यटन नक्शे में एक विशेष स्थान दिलाती हैं।

पर्यावरणीय चुनौतियाँ और संरक्षण

भारत के पर्वत पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनमें प्रमुख भूमिका जलवायु परिवर्तन की है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया तेज हो गई है, जिससे ग्लेशियरों के आकार में कमी आ रही है। इसका सीधा प्रभाव नदियों के जल स्तर और स्थानीय इकोसिस्टम पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त, ऊँचे स्थानों पर बसे ग्रामों और नगरों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

वनों की कटाई और अतिक्रमण भी पर्वतीय क्षेत्रों में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या और कृषि भूमि की आवश्यकता ने वनों पर दबाव बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप जैव-विविधता का नुकसान हो रहा है। दुर्लभ पौधे और पशु प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, जो पूरे इकोसिस्टम को अस्थिर बना रहे हैं।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठन मिलकर विभिन्न उपाय कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू किया जा रहा है और नए वन सरंक्षण परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। जैव-विविधता को संजोने के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाए जा रहे हैं, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों को सुरक्षित आवास मिल सके।

सरकार द्वारा ‘ग्रीन इंडिया मिशन’ जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो वनीकरण और निम्न कार्बन प्रभाव वाले विकास को बढ़ावा देते हैं। यह मिशन स्थानीय समुदायों को भी शामिल करता है, जिससे वे पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा सकें।

गैर-सरकारी संगठन भी जागरूकता अभियानों और स्थानीय पहल के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। वे विद्यालयों और पंचायतों में जलवायु शिक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण की जानकारी फैलाने का काम कर रहे हैं। सामूहिक प्रयासों से ही इन चुनौतियों का प्रभावी समाधान संभव है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *