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भारतीय राष्ट्रीय सेना: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

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भारतीय राष्ट्रीय सेना का परिचय

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA), जिसे आजाद हिंद फौज के नाम से भी जाना जाता है, के निर्माण का श्रेय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जाता है। इसकी स्थापना 1942 में हुई थी, और इसका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से पूरी तरह से मुक्त कराना था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे, ने भारतीय राष्ट्रीय सेना को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अहम हिस्सा बनाने के लिए काफी प्रयास किए।

भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना से पहले भी भारतीय स्वाधीनता संघर्ष कई दशकों से चल रहा था, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का दृष्टिकोण और उनके साथियों की प्रेरणा ने इस आंदोलन को एक नया आयाम दिया। INA का प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश शासन से पूरी तरह स्वतंत्रता हासिल करने के लिए संगठित और सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना था। इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है, क्योंकि इसे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में एक निर्णायक और प्रभावशाली कदम के रूप में देखा गया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह मानना था कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए केवल अहिंसात्मक विरोध के साथ-साथ एक मजबूती से संगठित और सशस्त्र संघर्ष की भी आवश्यकता है। यह दृष्टिकोण उन्हें भारतीय राष्ट्रीय सेना की स्थापना की दिशा में प्रेरित करता था। भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारतीय सैनिकों और आम जनता में स्वाधीनता के प्रति उत्साह और दृढ़ संकल्प को और भी तेज किया।

नेताजी के नेतृत्व में, INA ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया, जिसका अर्थ था भारत की राजधानी दिल्ली को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्त कराना। यह नारा भारतीय स्वतंत्रता के लिए जनता के दिलों में एक नयी उम्मीद और जुनून भर गया था। INA की नेतृत्व क्षमता, रणनीतिक दृष्टिकोण और उनके उद्देश्यों ने स्वतंत्रता संग्राम में एक नई प्रेरणा का संचार किया और भारतीय जनता को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ मुखर रूप से आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख और प्रेरणादायक नेता थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और उनके अद्वितीय नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया अध्याय जोड़ा। नेताजी की विचारधारा का मूल भारतीय स्वतन्त्रता और आत्मनिर्भरता पर आधारित था।

बोस की शिक्षा बहुत ही उच्च स्तरीय थी और उन्होंने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रपति के रूप में, वह महात्मा गांधी के साथ प्रारंभिक विचारधारात्मक मतभेदों के बावजूद, स्वतंत्रता संग्राम में एकजुटता के महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बने। नेताजी मानते थे कि स्वतंत्रता केवल भगवान की भक्ति और अनुनय पूती से नहीं मिल सकती; इसके लिए शारीरिक और मानसिक साहस के साथ-साथ सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है।

नेताजी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन था, जिसका नारा “दिल्ली चलो” था। उन्होंने भारतीय सैनिकों को यह विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता केवल उनकी एकता और दृढ़ संकल्प से प्राप्त हो सकती है। INA के साथ, नेताजी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रतीकात्मक रूप से तीन नायक-मंडली के रूप में उद्धृत किया – वीरता (वीर शिवाजी), बुद्धिमत्ता (सम्राट अशोक), और बलिदान (कर्ण)। उनका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराना था ताकि भारतीय समाज एक नए स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण कर सके।

बोस का दृढ़ संकल्प और उनका अटूट विश्वास भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बना। उनके नेतृत्व ने भारतीय राष्ट्रीय सेना को विदेशी ताकतों के खिलाफ मजबूत बनाया और भारतीयों में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित किया। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में INA की सेनाएं दक्षिण-पूर्व एशिया के कई मोर्चों पर लड़ी, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नए पृष्ठ खोले।

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प्रारंभिक चरण और गठन

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के गठन का प्रारंभिक चरण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह प्रक्रिया 1942 में शुरू हुई, जब जापानी सेना ने मलाया, सिंगापुर और बर्मा में त्वरित सफलताओं के बाद भारतीय युद्धबंदियों को सहयोगी के रूप में देखना शुरू किया। कर्नल मोहन सिंह ने पहले पहल इस विचार को साकार करते हुए INA का मार्गदर्शन करना आरंभ किया। उन्होंने युद्धबंदियों से मिलकर एक ऐसी सेना बनाने का प्रयास किया, जो स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।

शुरुआती समय में INA का गठन टोक्यो स्थित सीमामुखी केंद्र के देखरेख में हुआ। कर्नल मोहन सिंह इसके पहले कमांडर नियुक्त हुए और उनकी देखरेख में सेना की संरचना और संगठनात्मक ढांचा तैयार किया गया। जापानी सेना ने INA को न केवल समर्थन दिया, बल्कि तकनीकी और सैन्य प्रशिक्षण में भी सहायता की। प्रशिक्षण कार्यक्रम विशेष रूप से युद्ध रणनीतियों और आधुनिक टैक्टिक्स पर केंद्रित थे, जिससे INA के सैनिकों को उच्च-स्तरीय लड़ाई कौशल प्राप्त हुआ।

INA को जापानी सेना की तरफ से हथियार, रसद और उपकरण मिलने शुरू हो गए, जिससे ट्रेनिंग की प्रक्रिया और सुव्यवस्थित हो गई। इसी दौरान, संगठनात्मक संरचना में नई इकाइयों और बटालियनों का गठन भी हुआ, जो आगे चलकर INA के बड़े अभियानों में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। यह संगठनात्मक सुधार INA को एक सशक्त और संगठित सेना के रूप में उभरने में सहायक बना।

INA का यह प्रारंभिक चरण आत्मविश्वास और ऊर्जस्वयुक्त था, जिसमें तत्वगत तत्वों का समुचित दिशानिर्देश मिला। शुरुआती कमांडरों और जापानी समर्थन ने इसे एक सशक्त और साधन-संपन्न सेना में बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई। ऐसे प्रशिक्षण और संगठनात्मक ढांचे ने INA को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार किया।

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मेजर युद्ध अभियान और संघर्ष

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारतीय स्वतंत्रता के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण युद्ध अभियानों और संघर्षों में भाग लिया। INA का गठन मुख्यतः विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश भारतीय सेना के खिलाफ लड़ने के लिए हुआ था। प्रमुख सैन्य अभियानों में म्यानमार (तब बर्मा) और भारत की सीमाओं पर लड़ी गई लड़ाइयाँ शामिल हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

म्यानमार में INA के सबसे महत्वपूर्ण अभियानों में से एक ‘अराकान अभियान’ था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत-बर्मा सीमा पर स्थित अराकान क्षेत्र को ब्रिटिश पकड़ से मुक्त कराना था, जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था। हालांकि, कठिन परिस्थिति और आपूर्ति की कमी के कारण ये अभियान पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया, लेकिन इसने INA की सैन्य योग्यता का प्रमाण दिया।

1944 में, INA ने अपने अगले महत्वपूर्ण ‘इंफाल और कोहिमा अभियान’ की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य मणिपुर की राजधानी इंफाल और नागालैंड के कोहिमा क्षेत्र को ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त कराना था। भारतीय राष्ट्रीय सेना ने इन क्षेत्रों में जापानी सेना के सहयोग से आक्रमण किया। इंफाल और कोहिमा की लड़ाइयाँ बेहद तीव्र और निर्णायक थीं। शुरुआत में INA को कुछ सफलता मिली, लेकिन ब्रिटिश सेना की जबरदस्त ताकत और हवाई मदद ने अंततः इन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

INA का संघर्ष अंततः बर्मा में जापानी सेना की हार के साथ समाप्त हुआ, लेकिन इन अभियानों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा और उद्देश्य पैदा किया। भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिकों की वीरता और बलिदान ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ भारतीयों की जिज्ञासा और एकता को मजबूत किया। इस प्रकार, INA के युद्ध अभियान न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की धारा को भी नया रूप देने में सहायक साबित हुए।

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महिला यूनिट: रानी झांसी रेजिमेंट

‘रानी झांसी रेजिमेंट’ भारतीय राष्ट्रीय सेना (आई.एन.ए.) की एक अनोखी और मौलिक पहल के रूप में उभर कर सामने आई। इस महिला यूनिट का नामकरण महारानी लक्ष्मी बाई, भारत की वीरांगना, के सम्मान में किया गया। इसकी स्थापना सुभाष चंद्र बोस के द्वारा की गई थी, जिनका उद्देश्य महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदार बनाना था।

मई 1943 में रानी झांसी रेजिमेंट की स्थापना सिंगापुर में हुई थी और इसकी जिम्मेदारी दुर्गा अभयसेन को सौंपी गई। दुर्गा अभयसेन, जो ‘कैप्टन लक्ष्मी’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं, ने इस रेजिमेंट का नेतृत्व किया और उनके नेतृत्व में इस रेजिमेंट ने देशभक्ति और साहस की मिसाल कायम की।

इस यूनिट में महिलाओं को कड़ी सैन्य प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें फायर आर्म्स का इस्तेमाल, गुरिल्ला युद्ध तकनीकें और आत्मरक्षा शामिल थी। इसका मकसद था स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ महिलाओं को स्वावलंबी और सशक्त बनाना। यह उस समय की एक बड़ी सामाजिक क्रांति थी, जब महिलाओं के लिए सैन्य सेवा में शामिल होना अपारंपरिक माना जाता था।

रानी झांसी रेजिमेंट न केवल एक सैन्य बल थी, बल्कि यह महिलाओं के अधिकार और उनकी क्षमता का प्रतीक भी था। इसमें शामिल महिला सैनिकों ने भारतीय राष्ट्रीय सेना के हर अभियान में अपनी साहसिक भूमिका निभाई। इन महिला योद्धाओं ने यह सिद्ध किया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से कम नहीं हैं और देश की आजादी के लिए हर मुमकिन कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं।

कुल मिलाकर, रानी झांसी रेजिमेंट ने न केवल भारतीय राष्ट्रीय सेना को मजबूती दी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की मौलिक और सक्रिय भूमिका को भी उजागर किया। यह भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत प्रदान किया।

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स्वतंत्रता संग्राम पर INA का प्रभाव

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सेना सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में संगठित हुई और इसका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराना था। INA के अभियानों ने ब्रिटिश हुकूमत पर भारी दबाव डाला और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया उत्साह जगाया। 1943 में बोस ने जब ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया, तब भारतीय समाज में हूकुमत के प्रति विपरीत भावनाएँ तीव्र हो गईं।

INA की प्रमुख अभियान क्रियाएं दक्षिण-पूर्व एशिया में केंद्रित थीं। इन्होंने बर्मा (वर्तमान म्यांमार) और भारत के पूर्वोत्तर प्रदेशों में ब्रिटिश सेना के खिलाफ जंग लड़ी। इन अभियानों का मुख्य उद्देश्य भारत में प्रवेश कर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकना था। हालांकि यह प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए, लेकिन इसका नैतिक प्रभाव भारतीय समाज पर गहरा पड़ा।

इस संघर्ष ने भारतीय सेना के भीतर भी असंतोष पैदा किया। जब युद्ध के बाद INA के सैनिकों पर राजद्रोह के मुकदमे चलाए गए, तब भारतीय सेना और समाज में व्यापक आक्रोश उत्पन्न हुआ। लोगों ने INA सैनिकों का समर्थन किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भगत सिंह जैसी एकजुटता दिखाई। यह ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक बड़ा धक्का था और उसने आजादी की मांग को मुश्किल से खारिज किया।

INA के अभियानों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गति को तेज कर दिया और समाज में जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हर वर्ग और क्षेत्र में लोग ब्रिटिश शासन के अंत के पक्षधर बन गए। इसने अंततः 1947 में भारतीय स्वतंत्रता की नींव रखी। INA संघर्ष और उसके प्रभाव ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया था, जिससे भारतीय समाज में एकजुटता और स्वतंत्रता के प्रति अडिग संकल्प उत्पन्न हुआ।

INA परीक्षण और वाद-विवाद

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के सदस्यों के खिलाफ हुए परीक्षण भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं। ये परीक्षण 1945-46 में शुरू हुए, जिनका उद्देश्य INA के सदस्यों के ऊपर लगे राजद्रोह, हत्या और युद्ध से संबंधित अपराधों के आरोपों की जांच करना था। दिल्ली के लाल किले में इन अदालती कार्यवाहियों का प्रमुख मंचन हुआ, जिससे ये “लाल किला मुकदमा” के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

प्रमुख नेताओं में कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों और मेजर जनरल शाह नवाज खान प्रमुख थे। इन परीक्षणों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को न केवल देश में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अदालती कार्यवाहियों के दौरान, वकील बाबू पुरोहित और असफ अली ने प्रभावी तरीके से अभियुक्तों का बचाव किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन पनपने लगा।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की दृष्टि से देखा जाए तो इन परीक्षणों ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और भारतीय मुस्लिम लीग को एक मंच पर आने का मौका दिया। सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित INA के वीरता का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। कई लोग यह महसूस करने लगे कि ये सदस्य देशभक्त हैं और इन पर लगाए गए आरोप अनुचित हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस और जनमानस ने इन परीक्षणों को देखा और उसकी कड़ी आलोचना की।

यह कहना उचित होगा कि INA के परीक्षणों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जबरदस्त ऊर्जा का संचार किया। इन अदालती कार्यवाहियों ने भले ही सीधे तौर पर किसी कानूनी निर्णय को प्रभावित न किया हो, लेकिन उन्होंने भारत में बड़े पैमाने पर जन जागरूकता और विद्रोह की भावना को उत्पन्न किया। ऐसी परिस्थितियों में, यह कहना अनुचित न होगा कि INA के परीक्षण भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मील का पत्थर बन गए थे।

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भारतीय राष्ट्रीय सेना की विरासत

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने न केवल तत्कालीन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के सामने चुनौती पेश की, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए राष्ट्रीयता और साहस के नये प्रतिमान स्थापित किए। INA की स्थापना और इसके सदस्यों के बलिदानों ने भारतीय सेना के वर्तमान स्वरूप पर गहरा प्रभाव डाला है।

INA की विरासत का मूल्यांकन करते समय, यह स्पष्ट होता है कि इसकी क्रांतिकारी रणनीतियों और अडिग धैर्य ने भारतीय सेना में महत्वपूर्ण सुधारों को प्रेरणा दी। INA की इसी भावना और दृष्टिकोण ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, जिससे संगठित सैन्य आंदोलन का महत्व और बढ़ गया। आज, भारतीय सेना में रणनीतिक और नैतिक मूल्यों का गहरा संबंध INA के आदर्शों से देखा जा सकता है।

न केवल सैन्य दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में भी INA की विरासत आज भी प्रासंगिक है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान INA ने जो एकजुटता और समर्पण दिखाया, वह आज भी भारतीय सेना के हर जवान में जीवित है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना का निर्माण और उसका अनुशासन INA द्वारा संचारित मूल्यों पर आधारित है।

समकालीन भारत में, INA के योगदान का सम्मान किया जाता है और यह देशभक्ति की एक प्रतीकात्मक धरोहर बनी हुई है। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में INA के संघर्ष और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला जाता है, ताकि युवाओं को राष्ट्रीय कर्तव्य और त्याग की प्रेरणा मिल सके। इसके अलावा, भारतीय सेना के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी INA की रणनीतियों और शिक्षाओं को मुखरता दी जाती है, जो यह दर्शाता है कि INA की विरासत आज भी भारतीय सेना की नींव का अटूट हिस्सा बनी हुई है।

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