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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना: कारण एवं महत्वपूर्ण अधिवेशन

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भूमिका और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, 1885 में, भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने लोगों की जागरूकता को जन्म दिया। इस जागरूकता का परिणाम विभिन्न सामाजिक असंतोषों और आंदोलनों के रूप में सामने आया, जिसने भारतीयों को उनकी स्थिति पर सोचने और संगठित होने के लिए प्रेरित किया।

19वीं शताब्दी के मध्य में, भारत में औपनिवेशिक शासन के अत्याचारों ने भारतीय जनता के भीतर असंतोष की भावना को विकसित किया। किसानों और श्रमिकों के लिए ब्रिटिश कर प्रणाली, भूमि अधिग्रहण नीतियों और आर्थिक शोषण ने व्यापक असहमति को जन्म दिया। सामाजिक सुधारकों ने भी विभिन्न सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जातिवाद और महिलाओं के अधिकारों के लिए जागरूकता फैलानी शुरू की। इन परिवर्तनों ने भारतीय राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया।

कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य था भारतीय लोगों को एक मंच पर लाना, जहाँ वे अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकें। पार्टी की स्थापना में नेताओं का एक समूह, जैसे कि ए.ओ. ह्यूम, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीयों की राजनीतिक आवश्यकताओं को समझा और एक ऐसा संगठन बनाया जो भारतीयों की आवाज़ को ब्रिटिश सरकार के समक्ष रखने के लिए सक्षम हो। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस केवल एक राजनीतिक पार्टी नहीं थी, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत का प्रतीक थी, जिसने आगे जाकर भारतीय स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को मुंबई में हुई थी। इस आयोजन का नेतृत्व एक प्रमुख अधिवेशन के माध्यम से किया गया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिनिधि शामिल हुए। भारतीय समाज में जन जागरूकता और राजनीतिक चेतना को बढ़ाने के लिए यह संस्था प्रस्तावित की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश राज के तहत भारतीयों के अधिकारों और स्वायत्तता की मांग करना था।

कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले संस्थापकों में ए.O. हूम, दादा भाई नौरोजी, और मार्गरेट कुक हैं। इन लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक सहकारी मंच के निर्माण का प्रयास किया। पहले अधिवेशन में शामिल प्रतिनिधियों ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें भारत के प्रति ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों का विरोध करना और अधिक राजनीतिक अधिकारों की मांग करना शामिल था। इसका स्पष्ट लक्षय था भारतीयों की राजनीतिक जागरूकता को बढ़ाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा करना।

पहले अध्यक्ष, वहीद अंसारी, ने इस अधिवेशन में केंद्रित रूप से यह स्पष्ट किया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक राजनीतिक मंच के रूप में कार्य करेगी। उन्होंने अपने भाषण के माध्यम से कांग्रेस के उद्देश्यों और इसकी कार्य विधि को समझाया। संगठित रूप से भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए यह अधिवेशन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। यह संगठनों की ताकत और एकजुटता की भावना को प्रदर्शित करता है, जिसका प्रभाव आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर पड़ा।

प्रमुख कारण जो कांग्रेस की स्थापना के लिए प्रेरक बने

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी, और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे जिन्होंने इसे संभव बनाया। सबसे पहले, सामुदायिक मतभेदों का विकास देखा गया। विभिन्न जातियों और सामुदायों के बीच बढ़ते तनाव ने एक ऐसे मंच की आवश्यकता उत्पन्न की जहां विभिन्न वर्गों की आवाज़ सुनी जा सके। कांग्रेस इस मतभेद को समाप्त करने और एकता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।

इसके अतिरिक्त, आर्थिक शोषण भी एक प्रमुख कारक था। ब्रिटिश राज के दौरान भारतीयों पर बढ़ते कर और अन्य आर्थिक नीतियों के चलते आम लोगों में असंतोष फैला। भारतीय जनता की मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हड़प लिया गया, जो कि पारंपरिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए विपरीत प्रभाव डालता था। इस शोषण का विरोध करने के लिए एक राजनीतिक मंच की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई, जहाँ भारतीय अपनी आवाज उठा सकें।

एक ओर, राजनीतिक अधिकारों की मांग ने भी कांग्रेस की स्थापना को प्रेरित किया। भारतीय नागरिकों को ब्रिटिश शासन द्वारा सीमित राजनीतिक अधिकार मिले थे, जिससे निराशा और असंतोष पनप रहा था। अनुभवी राजनीतिक नेताओं जैसे कि ए.ओ. ह्यूम ने यह महसूस किया कि एक संगठित बल के माध्यम से ही भारतीयों की आवाज को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार, कांग्रेस ने एकत्र होकर इन समस्याओं का समाधान खोजने का निर्णय लिया।

इन सभी कारकों ने मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। यह संगठन न केवल सामुदायिक एकता को बढ़ावा देने के लिए बल्कि भारतीय जनमानस के अधिकारों की रक्षा और आर्थिक न्याय के लिए भी समर्पित था।

महत्वपूर्ण अधिवेशनों का इतिहास

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास विभिन्न महत्वपूर्ण अधिवेशनों से भरा हुआ है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 1885 में स्थापित होने के बाद, कांग्रेस ने कई अधिवेशनों का आयोजन किया, जो न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे, बल्कि समाज पर भी गहरा प्रभाव डालने में सफल रहे।

पहला महत्वपूर्ण अधिवेशन, जो 1885 में हुआ, उसमें विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और यह भारतीय राजनीतिक जागरूकता का प्रारंभिक बिंदु बना। इस अधिवेशन का उद्देश्य सरकार को भारतीयों की आवश्यकताओं को बताना था। इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस ने धीरे-धीरे एक संगठित राजनीतिक बल के रूप में उभरना आरम्भ किया।

1905 में कोलकाता में आयोजित अधिवेशन ने बंटवारे के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की, जिसने भारतीयों में जागरूकता और एकता का संचार किया। यह अधिवेशन न केवल अपने समय में महत्वपूर्ण था, बल्कि बाद में भारतीय राजनीतिक विचारधारा को भी प्रभावित किया। इसके अलावा, 1919 का अधिवेशन भी महत्वपूर्ण था, जिसमें जलियांवाले बाग हत्याकांड के बाद असहमति के स्वर उठे।

1920 में आयोजित नागपुर अधिवेशन ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया, जिससे कांग्रेस ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नई दिशा प्राप्त की। 1942 में ‘करो या मरो’ का प्रस्ताव भी महत्वपूर्ण रहा, जिसने इस आंदोलन को नई ऊर्जा और लक्ष्य दिया। इन सभी अधिवेशनों ने न केवल कांग्रेस के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया, बल्कि भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कांग्रेस का उद्देश्य और सिद्धांत

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी, और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों और सिद्धांतों का योगदान था। कांग्रेस का प्राथमिक उद्देश्य ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक संगठित राजनीतिक आंदोलन को बढ़ावा देना था। इसके माध्यम से भारतीयों को अपने राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करने एवं स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष को सशक्त बनाने का अवसर प्रदान किया गया। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य यह समझते थे कि स्वराज्य की प्राप्ति के लिए एक सशक्त राष्ट्रीय पहचान के निर्माण की आवश्यकता है।

कांग्रेस ने भारतीय समाज में विभिन्न वर्गों, जातियों और धर्मों को जोड़कर एकजुटता की भावना को विकसित करने का प्रयास किया। इसके सिद्धांतों में अटल सहिष्णुता, समानता और सामाजिक न्याय का महत्वपूर्ण स्थान था। इन विचारों के माध्यम से कांग्रेस ने सभी भारतीयों को राजनीति में भाग लेने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने का संदेश दिया। संगठन ने यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास किया कि समाज के कमजोर वर्ग, विशेष रूप से महिलाएं और अनुसूचित जातियां, राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल हों।

कांग्रेस की विचारधारा ने भारतीय राष्ट्रीयता का एक नया स्वरूप तैयार किया, जहाँ सभी भारतीय एक मंच पर मिलकर अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते थे। इसके उद्देश्य और सिद्धांत सामूहिक बढ़ोतरी के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देने पर केंद्रित थे। इस प्रकार, कांग्रेस ने न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाए, बल्कि भारतीय समाज को एकत्रित करने और उसे सशक्त बनाने का संकल्प भी लिया। यह सभी उद्देश्यों ने कांग्रेस को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद की।

गांधी जी का योगदान

महात्मा गांधी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उनका नेतृत्व और दृष्टिकोण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में मौलिक परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध हुआ। गांधी जी ने कांग्रेस पार्टी को एक न केवल राजनीतिक बल, बल्कि एक जन आंदोलन में बदल दिया। उनका ध्यान हमेशा समाज के सबसे निचले स्तर पर रहने वाले लोगों को जोड़ने पर था, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी भारतीयों की आवाज़ सुनी जाए।

गांधी जी ने अपने शांतिपूर्ण प्रतिरोध के सिद्धांत को अपनाया, जिसे ‘सत्याग्रह’ कहा जाता है। यह सिद्धांत न केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आंदोलन की पहचान बना, बल्कि यह विश्व स्तर पर भी मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गया। उन्होंने असहमति को भी एक रचनात्मक तरीके से प्रकट किया, जिससे यह संदेश गया कि संघर्ष का मतलब केवल हिंसा नहीं होता। गांधी जी ने जनसभाओं में प्रेरणादायक भाषण दिए और आम लोगों को संगठित किया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ।

महात्मा गांधी ने अपने नेतृत्व के दौरान कई महत्वपूर्ण अधिवेशनों में भाग लिया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के दृष्टिकोण को आम लोगों के हितों के अनुकूल बनाने के लिए विभिन्न प्रस्ताव पेश किए। उनकी सामुदायिक योजनाओं ने भारतीय समाज में व्यापक परिवर्तन करने का प्रयास किया। उनके विचारों ने न केवल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया, बल्कि उन्हें एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर देश के नेता तक का सफर तय कराया। गांधी जी का योगदान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो आज भी हमारे लिए प्रेरणादायक है।

कांग्रेस द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसे 1885 में स्थापित किया गया था, ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक केंद्रीय भूमिका निभाई। कांग्रेस के नेतृत्व में अनेक प्रमुख आंदोलन और संघर्ष उभरे, जिन्होंने भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता को उत्प्रेरित किया। सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था असहमति और असहमति का आंदोलन, जिसमें कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन जागरूकता को प्रेरित किया।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 के दशक में असहमति की लहर ने एक नई ऊर्जा का संचार किया। सत्ताधारी ब्रिटिश सरकार के प्रति एकजुट होकर कांग्रेस ने असहमति अभियानों का संचालन किया, जैसे कि असहमति आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और भारतीय स्वतंत्रता की मांग में निहित अन्य आंदोलनों। इन अभियानों ने न केवल भारतीयों को एकजुट किया, बल्कि जनसंवाद के नए तरीके भी विकसित किए।

इसके अतिरिक्त, कांग्रेस ने कई महत्वपूर्ण अधिवेशन आयोजित किए जिनमें स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति और दिशा पर चर्चा की गई। जिसमें 1930 का दांडी मार्च और 1942 का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शामिल हैं, दोनों का सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से गहरा प्रभाव पड़ा। कांग्रेस के इन प्रयासों ने भारतीयों के बीच राष्ट्रीयता और आत्मनिर्भरता की भावना को जागृत किया।

तथ्य यह है कि कांग्रेस ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक मंच प्रदान किया, बल्कि विभिन्न वर्गों और समुदायों को भी अपनी आवाज उठाने का अवसर प्रदान किया। कांग्रेस के कई सदस्य, जैसे जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस, ने इन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। कांग्रेस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अंततः 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की प्राप्ति के रूप में देखने को मिली।

कांग्रेस और विभाजन की राजनीति

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेषकर विभाजन की राजनीति के संदर्भ में। कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था, और इसके उद्देश्यों में भारतीय राजनीतिक जागरूकता की वृद्धि करना और ब्रिटिश राज के खिलाफ एकजुट होना शामिल था। हालांकि, समय के साथ, कांग्रेस को विभाजन की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेषकर मुस्लिम और हिंदू समुदायों के बीच बढ़ते तनाव के दौरान। यह तनाव कांग्रेस की नीतियों को प्रभावित करता रहा, और पार्टी ने अक्सर अपने दृष्टिकोण को इन सामुदायिक जरूरतों के अनुसार संशोधित किया।

20वीं सदी के प्रारंभिक दशकों में, कांग्रेस ने साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने की कोशिश की, लेकिन यह समझा जा सकता है कि विभिन्न धार्मिक समूहों के विशेष राजनीतिक लक्ष्यों के कारण पार्टी को कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के साथ ही हिंदू-मुस्लिम राजनीति में एक नया मोड़ आया। कांग्रेस ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि यह दोनों समुदायों के हितों का प्रतिनिधित्व करें, लेकिन कभी-कभी यह प्रयास विवादों में घिर गया।

कांग्रेस की विभाजन की राजनीति के समाधान के लिए यह आवश्यक था कि वह अपने दृष्टिकोण को समर्पित रखे। 1940 के दशक के मध्य में, जब विभाजन की चर्चाएँ तेज़ हो गईं, तब कांग्रेस ने एकता और भारत के अखंडता के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने की कोशिश की। हालांकि, विभाजन के वक्त राजनीतिक दवाब और विफल संवाद ने कांग्रेस के भीतर भी मतभेद उत्पन्न किए। इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस की नीतियों में परिवर्तन आया, जिसका प्रभाव उसके विश्वसनीयता और लोकप्रियता पर पड़ा।

निष्कर्ष और वर्तमान संदर्भ

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी, और यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ बन गई। कांग्रेस के कार्यों ने न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को बल दिया, बल्कि भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एकजुटता और एकता की भावना को भी प्रोत्साहित किया। इसकी स्थापना के उद्देश्य स्पष्ट थे: भारत में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाना, सामाजिक सुधारों को प्रचारित करना, और एक प्रतिनिधि सरकार की स्थापना की दिशा में प्रयास करना। इन लक्ष्यों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भारत की राजनीति में एक केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

वर्तमान संदर्भ में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अस्तित्व और इसके सिद्धांतों का मूल्यांकन करना आवश्यक है। आज, कांग्रेस का योगदान भारतीय लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है, हालांकि इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, नई विचारधाराएं और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के बढ़ते जटिलताएँ कांग्रेस के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनी हुई हैं। इसके बावजूद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आज भी समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने और धर्मनिरपेक्षता व सामाजिक न्याय को बनाए रखने के लिए प्रयासरत है।

वैसे तो कई नई पार्टियों और संगठनों ने भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया है, फिर भी कांग्रेस का अस्तित्व अब भी प्रासंगिक है। इसका ऐतिहासिक योगदान और सामाजिक न्याय की दिशा में की गई इसकी कोशिशों के कारण, कांग्रेस आज भी कई भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इसके चलते कांग्रेस की भूमिका को केवल इतिहास की परछाई के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में भी महत्व दिया जा सकता है।

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